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| ΙΛΙΑΣ Ζ | Sechster Gesang | |
| Τρώων δ' οἰώϑη καὶ Ἀχαιών φύλοπις αἰνή· | Einsam war der Troer und Danaer schreckliche Feldschlacht. | |
| πολλὰ δ' ἄρ' ἔνϑα καὶ ἔνϑ' ἴϑυσε μάχη πεδίοιο | Viel nun hierhin und dort durchtobte der Kampf das Gefilde, | |
| ἀλλήλων ἰϑυνομένων χαλκήρεα δοῦρα | Ungestüm aufeinander gewandt erzblinkende Lanzen, | |
| μεσσηγὺς Σιμόεντος ἰδὲ Ξάνϑοιο ῥοάων. | Innerhalb des Simois her und des strömenden Xanthos. | |
| Αἴας δὲ πρῶτος Τελαμώνιος, ἕρκος Ἀχαιῶν, | 5 | Ajas der Telamonide zuerst, Schutzwehr der Achaier, |
| Τρώων ῥῆξε φάλαγγα φάος δ' ἑτάροισιν ἔϑηκεν | Brach die Schar der Troer, und schaffte Licht den Genossen, | |
| ἄνδρα βαλών, ὃς ἄριστος ἐνὶ Θρῄκεσσι τέτυκτο, | Treffend den Mann, der der beste des thrakischen Volkes einherging, | |
| υἱὸν Ἐυσσώρου Ἀκάμαντ' ἠύν τε μέγαν τε. | Ihn des Eusoros' Sohn, den Akamas, groß und gewaltig. | |
| τόν ῥ' ἔβαλε πρῶτος κόρυϑος φάλον ἱπποδασείης, | Diesem traf er zuerst den umflatterten Kegel des Helmes, | |
| ἐν δὲ μετώπῳ πῆξε, πέρησε δ' ἄρ' ὀστέον εἴσω | 10 | Daß er die Stirne durchbohrt'; hineindrang tief in den Schädel |
| αἰχμὴ χαλκείη· τὸν δὲ σκότος ὄσσε κάλυψεν. | Jenem die eherne Spitz', und Nacht umhüllt' ihm die Augen. | |
| Ἄξυλον δ' ἄρ' ἔπεφνε βοὴν ἀγαϑὸς Διομήδης | Drauf den Axylos erschlug der Rufer im Streit Diomedes, | |
| Τευϑρανίδην, ὃς ἔναιεν ἐυκτιμένῃ ἐν Ἀρίσβῃ | Teuthrans Sohn: er wohnt' in der schöngebauten Arisbe, | |
| ἀφνειὸς βιότοιο, φίλος δ' ἦν ἀνϑρώποισιν· | Reich an Lebensgut; auch war er geliebt von den Menschen, | |
| πάντας γὰρ φιλέεσκεν ὁδῷ ἔπι οἰκία ναίων. | 15 | Weil er alle mit Lieb' herbergete, wohnend am Heerweg. |
| ἀλλά οἱ οὔ τις τῶν γε τότ' ἤρκεσε λυγρὸν ὄλεϑρον | Doch nicht einer davon entfernt' ihm das grause Verderben, | |
| πρόσϑεν ὑπαντιάσας, ἀλλ' ἄμφω ϑυμὸν ἀπηύρα, | Vor ihn selbst hintretend: es tötete beide der Krieger, | |
| αὐτὸν καὶ ϑεράποντα Καλήσιον, ὅς ῥα τόϑ' ἵππων | Ihn und den Kampfgenossen Kalesios, der des Gespannes | |
| ἔσκεν ὑφηνίοχος· τὼ δ' ἄμφω γαῖαν ἐδύτην. | Lenker ihm war; und zugleich versanken sie unter die Erde. | |
| Δρῆσον δ' Εὐρύαλος καὶ Ὀφέλτιον ἐξενάριξεν· | 20 | Aber Euryalos nahm des Opheltios Waffen und Dresos; |
| βῆ δὲ μετ' Αἴσηπον καὶ Πήδασον, οὕς ποτε νύμφη | Drauf den Äsepos ereilt' er und Pedasos, die mit der Naïs | |
| νηὶς Ἀβαρβαρέη τέκ' ἀμύμονι Βουκολίωνι· – | Abarbarea einst der edle Bukolion zeugte. | |
| Βουκολίων δ' ἦν υἱὸς ἀγαυοῦ Λαομέδοντος | Aber Bukolion war Laomedons Sohn des Erhabnen, | |
| πρεσβύτατος γενεῇ, σκότιον δέ ἑ γείνατο μήτηρ. | Seines Geschlechts der erste; doch heimlich gebar ihn die Mutter. | |
| ποιμαίνων δ' ἐπ' ὄεσσι μίγη φιλότητι καὶ εὐνῇ, | 25 | Hütend vordem der Schafe gewann er Lieb' und Umarmung, |
| ἣ δ' ὑποκυσαμένη διδυμάονε γείνατο παῖδε· – | Und befruchtet gebar ihm Zwillingssöhne die Nymphe. | |
| καὶ μὲν τῶν ὑπέλυσε μένος καὶ φαίδιμα γυῖα | Beiden löste nunmehr die Kraft und die strebenden Glieder | |
| Μηκιστηιάδης καὶ ἀπ' ὤμων τεύχε' ἐσύλα. | Er der Mekisteiad', und entzog den Schultern die Rüstung. | |
| Ἀστύαλον δ' ἄρ' ἔπεφνε μενεπτόλεμος Πολυποίτης· | Auch den Astyalos schlug der streitbare Held Polypötes; | |
| Πιδύτην δ' Ὀδυσεὺς Περκώσιον ἐξενάριξεν | 30 | Und den Pedytes bezwang, den Perkosier, stürmend Odysseus |
| ἔγχεϊ χαλκείῳ, Τεῦκρος δ' Ἀρετάονα δῖον. | Mit erzblinkender Lanz'; und Teukros den Held Aretaon. | |
| Αντίλοχος δ' Ἄβληρον ἐνήρατο δουρὶ φαεινῷ | Nestors mutiger Sohn Antilochos warf den Ableros | |
| Νεστορίδης, Ἔλατον δὲ ἄναξ ἀνδρῶν Ἀγαμέμνων· | Hin, und den Elatos hin der Völkerfürst Agamemnon: | |
| ναῖε δὲ Σατνιόεντος ἐυρρείταο παρ' ὄχϑας | Dieser bewohnt' an des Stroms Satniois grünenden Ufern | |
| Πήδασον αἰπεινήν. Φύλακον δ' ἕλε Λήιτος ἥρως | 35 | Pedasos luftige Stadt; den Phylakos traf, da er hinfloh, |
| φεύγοντ'· Εὐρύπυλος δὲ Μελάνϑιον ἐξενάριξεν. | Leïtos; und Eurypylos nahm des Melanthios Rüstung. | |
| Ἄδρηστον δ' ἄρ' ἔπειτα βοὴν ἀγαϑὸς Μενέλαος | Doch den Adrastos erhaschte der Rufer im Streit Menelaos | |
| ζωὸν ἕλ'· ἵππω γάρ οἱ, ἀτυζομένω πεδίοιο, | Lebend anjetzt; denn die Rosse durchsprengten ihm scheu das Gefilde, | |
| ὄζῳ ἔνι βλαφϑέντε μυρικίνῳ ἀγκύλον ἅρμα | Aber die Füß' im Zweige der Tamariske verwickelnd | |
| ἄξαντ' ἐν πρώτῳ ῥυμῷ αὐτὼ μὲν ἐβήτην | 40 | Brachen sie vorn die Deichsel des krummen Geschirrs, und enteilten |
| πρὸς πόλιν, ᾗ περ οἱ ἄλλοι ἀτυζόμενοι φοβέοντο, | Selber zur Stadt, wo noch andre verwilderte Rosse hinaufflohn. | |
| αὐτὸς δ' ἐκ δίφροιο παρὰ τροχὸν ἐξεκυλίσϑη | Jener entsank dem Sessel, und taumelte neben dem Rade | |
| πρηνὴς ἐν κονίῃσιν ἐπὶ στόμα. πὰρ δέ οἱ ἔστη | Vorwärts hin in den Staub auf das Antlitz. Siehe da naht' ihm | |
| Ἀτρεΐδης Μενέλαος ἔχων δολιχόσκιον ἔγχος. | Atreus' Sohn Menelaos mit weithinschattender Lanze. | |
| Ἄδρηστος δ' ἄρ' ἔπειτα λαβὼν ἐλλίσσετο γούνων· | 45 | Aber Adrastos umschlang ihm die Knie', und jammerte flehend: |
| »ζώγρει, Ἀτρέος υἱέ, σὺ δ' ἄξια δέξαι ἄποινα. | Fahe mich, Atreus Sohn, und nimm dir würdige Lösung. | |
| πολλὰ δ' ἐν ἀφνειοῦ πατρὸς κειμήλια κεῖται, | Viel der Kleinode hegt der begüterte Vater im Hause, | |
| χαλκός τε χρυσός τε πολύκμητός τε σίδηρος· | Erz und Goldes genug, und schöngeschmiedetes Eisen. | |
| τῶν κέν τοι χαρίσαιτο πατὴρ ἀπερείσι' ἄποινα, | Hievon reicht mein Vater dir gern unermeßliche Lösung, | |
| εἴ κεν ἐμὲ ζωὸν πεπύϑοιτ' ἐπὶ νηυσὶν Ἀχαιῶν.« | 50 | Wenn er mich noch lebend vernimmt bei den Schiffen Achaias. |
| ὣς φάτο· τῷ δ' ἄρα ϑυμὸν ἐνὶ στήϑεσσιν ἔπειϑεν, | Jener sprach's, und diesem das Herz im Busen bewegt' er. | |
| καὶ δή μιν τάχ' ἔμελλε ϑοὰς ἐπὶ νῆας Ἀχαιῶν | Und schon war er bereit ihn dem Kampfgenossen zu geben, | |
| δώσειν ᾧ ϑεράποντι καταξέμεν· ἀλλ' Ἀγαμέμνων | Der zu den hurtigen Schiffen ihn führete. Doch Agamemnon | |
| ἀντίος ἦλϑε ϑέων καὶ ὁμοκλήσας ἔπος ηὔδα· | Eilete laufend heran, und laut ihn scheltend begann er: | |
| »ὦ πέπον, ὦ Μενέλαε, τί ἦ δὲ σὺ κήδεαι οὕτως | 55 | Trautester, o Menelaos, warum doch sorgest du also |
| ἀνδρῶν; ἦ σοὶ ἄριστα πεποίηται κατὰ οἶκον | Jener? Ja herrliche Taten geschahn dir daheim von den Männern | |
| πρὸς Τρώων. τῶν μή τις ὑπεκφύγοι αἰπὺν ὄλεϑρον | Trojas! Keiner davon entfliehe nun grausem Verderben, | |
| χεῖράς ϑ' ἡμετέρας, μηδ' ὅν τινα γαστέρι μήτηρ | Keiner nun unserem Arm! auch nicht im Schoße das Knäblein, | |
| κοῦρον ἐόντα φέροι, μηδ' ὃς φύγοι· ἀλλ' ἅμα πάντες | Welches die Schwangere trägt, auch das nicht! Alles zugleich ihm | |
| Ἰλίου ἐξαπολοίατ' ἀκήδεστοι καὶ ἄφαντοι.« | 60 | Sterbe, was Ilios nährt, hinweggerafft und vernichtet! |
| ὣς εἰπὼν ἔτρεψεν ἀδελφεόο φρένας ἥρως | Also sprach und wandte des Bruders Herz Agamemnon, | |
| αἴσιμα παρειπών· ὃ δ' ἀπὸ ἕϑεν ὤσατο χειρὶ | Denn sein Wort war gerecht; und er stieß den edlen Adrastos | |
| ἥρω' Ἄδρηστον. τὸν δὲ κρείων Ἀγαμέμνων | Weg mit der Hand. Da bohrt' ihm der Völkerfürst Agamemnon | |
| οὖτα κατὰ λαπάρην· ὃ δ' ἀνετράπετ', Ἀτρεΐδης δὲ | Seine Lanz' in den Bauch; und er kehrte sich. Atreus Sohn dann | |
| λὰξ ἐν στήϑεσι βὰς ἐξέσπασε μείλινον ἔγχος. | 65 | Stemmte die Fers' auf die Brust, und zog den eschenen Speer aus. |
| Νέστωρ δ' Ἀργεΐοισιν ἐκέκλετο μακρὸν ἀύσας· | Nestor anjetzt ermahnte mit lautem Ruf die Argeier: | |
| »ὦ φίλοι, ἥρωες Δαναοί, ϑεράποντες Ἄρηος, | Freund', ihr Helden des Danaerstamms, o Genossen des Ares! | |
| μή τις νῦν ἐνάρων ἐπιβαλλόμενος μετόπισϑεν | Daß nun keiner zu Raub und Beute gewandt mir dahinten | |
| μιμνέτω, ὥς κεν πλεῖστα φέρων ἐπὶ νῆας ἵκηται, | Zaudere, um das meiste hinab zu den Schiffen zu tragen! | |
| ἀλλ' ἄνδρας κτείνωμεν· ἔπειτα δὲ καὶ τὰ ἕκηλοι | 70 | Laßt uns töten die Männer! Nachher auch könnt ihr geruhig |
| νεκροὺς ἂμ πεδίον συλήσετε τεϑνηῶτας.« | Leichnamen durch das Gefild' ausziehn ihr Waffengeschmeide. | |
| ὣς εἰπὼν ὤτρυνε μένος καὶ ϑυμὸν ἑκάστου. | Jener sprach's, und erregte den Mut und die Herzen der Männer. | |
| ἔνϑα κεν αὖτε Τρῶες ἀρηιφίλων ὑπ' Ἀχαιῶν | Bald nun wären die Troer vor Argos kriegrischen Söhnen | |
| Ἴλιον εἲς ἀνέβησαν, ἀναλκείῃσι δαμέντες, | Ilios zugeflohn, durch Ohnmacht alle gebändigt; | |
| εἰ μὴ ἄρ' Αἰνείᾳ τε καὶ Ἕκτορι εἶπε παραστὰς | 75 | Aber schnell zu Äneias und Hektor redete nahend |
| Πριαμίδης Ἕλενος οἰωνοπόλων ὄχ' ἄριστος· | Helenos, Priamos' Sohn, der kundigste Vogeldeuter: | |
| »Αἰνεία τε καὶ Ἕκτορ, ἐπεὶ πόνος ὔμμι μάλιστα | Hektor du, und Äneias; denn euch belastet die meiste | |
| Τρώων καὶ Λυκίων ἐγκέκλιται, οὕνεκ' ἄριστοι | Kriegsarbeit der Troer und Lykier, weil ihr die Besten | |
| πᾶσαν ἐπ' ἰϑύν ἐστε μάχεσϑαί τε φρονέειν τε, | Seid zu jeglichem Zweck, mit Kraft gerüstet und Weisheit: | |
| στῆτ' αὐτοῦ καὶ λαὸν ἐρυκάκετε πρὸ πυλάων | 80 | Steht allhier, und hemmet das Volk zurück vor den Toren, |
| πάντῃ ἐποιχόμενοι, πρὶν αὖτ' ἐν χερσὶ γυναικῶν | Rings das Gedräng' umwandelnd, bevor in die Arme der Weiber | |
| φεύγοντας πεσέειν, δηίοισι δὲ χάρμα γενέσϑαι. | Fliehend sich jene gestürzt, dem höhnenden Feinde zum Jubel! | |
| αὐτὰρ ἐπεί κε φάλαγγας ἐποτρύνητον ἁπάσας, | Aber nachdem ihr umher die Ordnungen wieder ermuntert, | |
| ἡμεῖς μὲν Δαναοῖσι μαχεσσόμεϑ' αὖϑι μένοντες, | Wollen wir selbst hier bleibend der Danaer Scharen bekämpfen, | |
| καὶ μάλα τειρόμενοί περ· ἀναγκαίη γὰρ ἐπείγει. | 85 | Hart bedrängt wie wir sind; denn Not gebietet ja solches: |
| Ἕκτορ, ἀτὰρ σὺ πόλινδε μετέρχεο, εἰπὲ δ' ἔπειτα | Hektor, du geh indessen gen Ilios, sage dann eilend | |
| μητέρι σῇ καὶ ἐμῇ· ἣ δὲ ξυνάγουσα γεραιὰς | Unserer Mutter es an. Sie, edlere Weiber versammelnd | |
| νηὸν Ἀϑηναίης γλαυκώπιδος ἐν πόλει ἄκρῃ, | Hoch auf die Burg, zum Tempel der Herrscherin Pallas Athene | |
| οἴξασα κληῖδι ϑύρας ἱεροῖο δόμοιο, | Öffne dort mit dem Schlüssel die Pforte des heiligen Hauses; | |
| πέπλον, ὅ οἱ δοκέει χαριέστατος ἠδὲ μέγιστος | 90 | Und das Gewand, so ihr das köstlichste scheint und das größte |
| εἶναι ἐνὶ μεγάρῳ καί οἱ πολὺ φίλτατος αὐτῇ, | Aller umher im Palast, und ihr das geliebteste selber, | |
| ϑεῖναι Ἀϑηναίης ἐπὶ γούνασιν ἠυκόμοιο· | Lege sie hin auf die Kniee der schöngelockten Athene; | |
| καί οἱ ὑποσχέσϑαι δύο καὶ δέκα βοῦς ἐνὶ νηῷ | Und gelob' in dem Tempel ihr zwölf untadliche Kühe, | |
| ἤνις ἠκέστας ἱερευσέμεν, αἴ κ' ἐλεήσῃ | Jährige, ungezähmte, zu heiligen: wenn sie der Stadt sich, | |
| ἄστυ τε καὶ Τρώων ἀλόχους καὶ νήπια τέκνα, | 95 | Und der troischen Fraun und zarten Kinder erbarmet; |
| αἴ κεν Τυδέος υἱὸν ἀπόσχῃ Ἰλίου ἱρῆς | Wenn sie des Tydeus' Sohn von der heiligen Ilios abwehrt, | |
| ἄγριον αἰχμητήν, κρατερὸν μήστωρα φόβοιο, | Jenen Stürmer der Schlacht, den gewaltigen Schreckengebieter, | |
| ὃν δὴ ἐγὼ κάρτιστον Ἀχαιῶν φημὶ γενέσϑαι. | Den ich fürwahr den Stärksten im Volk der Danaer achte! | |
| οὐδ' Ἀχιλῆά ποϑ' ὧδέ γ' ἐδείδιμεν ὄρχαμον ἀνδρῶν, | Selbst vor Achilleus nicht, dem Herrschenden, zagten wir also, | |
| ὅν περ φασὶ ϑεᾶς ἐξέμμεναι· ἀλλ' ὅδε λίην | 100 | Welcher doch Sohn der Göttin gepriesen wird! Jener, wie heftig |
| μαίνεται, οὐδέ τίς οἱ δύναται μένος ἰσοφαρίζειν.« | Wütet er! Keiner vermag an Gewalt ihm gleich sich zu stellen! | |
| ὣς ἔφαϑ'· Ἕκτωρ δ' οὔ τι κασιγνήτῳ ἀπίϑησεν. | Jener sprach's; doch Hektor gehorcht' unverdrossen dem Bruder. | |
| αὐτίκα δ' ἐξ ὀχέων σὺν τεύχεσιν ἄλτο χαμᾶζε, | Schnell vom Wagen herab mit den Rüstungen sprang er zur Erde. | |
| πάλλων δ' ὀξέα δοῦρα κατὰ στρατὸν ᾤχετο πάντῃ | Schwenkend die spitzigen Lanzen, durchwandelt' er alle Geschwader, | |
| ὀτρύνων μαχέσασϑαι, ἔγειρε δὲ φύλοπιν αἰνήν. | 105 | Rings ermahnend zum Kampf, und erweckte die tobende Feldschlacht. |
| οἳ δ' ἐλελίχϑησαν καὶ ἐναντίοι ἔσταν Ἀχαιῶν, | Jene nun wandten die Stirn', und begegneten kühn den Achaiern. | |
| Ἀργέιοι δ' ὑπεχώρησαν, λῆξαν δὲ φόνοιο· | Argos' Söhn' itzt wichen zurück, und ruhten vom Morde, | |
| φὰν δέ τιν' ἀϑανάτων ἐξ οὐρανοῦ ἀστερόεντος | Wähnend, es sei ein unsterblicher Gott vom sternichten Himmel | |
| Τρωσὶν ἀλεξήσοντα κατελϑέμεν· ὣς ἐλέλιχϑεν. | Niedergeeilt, zu helfen den schnell umkehrenden Troern. | |
| Ἕκτωρ δὲ Τρώεσσιν ἐκέκλετο μακρὸν ἀύσας· | 110 | Hektor anjetzt ermahnte mit lautem Rufe die Troer: |
| »Τρῶες ὑπέρϑυμοι τηλεκλειτοί τ' ἐπίκουροι, | Trojas mutige Söhn', und fernberufene Helfer! | |
| ἀνέρες ἔστε, φίλοι, μνήσασϑε δὲ ϑούριδος ἀλκῆς, | Seid nun Männer, o Freund', und gedenkt des stürmenden Mutes; | |
| ὄφρ' ἂν ἐγὼ βήω προτὶ Ἴλιον ἠδὲ γέρουσιν | Während ich selbst hinwandle gen Ilios, und die erhabnen | |
| εἴπω βουλευτῇσι καὶ ἡμετέρῃς ἀλόχοισιν | Greise des Rats anmahne, zugleich auch unsere Weiber, | |
| δαίμοσιν ἀρήσασϑαι, ὑποσχέσϑαι δ' ἑκατόμβας.« | 115 | Daß sie den Himmlischen flehn, und Sühnhekatomben verheißen. |
| ὣς ἄρα φωνήσας ἀπέβη κορυϑαίολος Ἕκτωρ· | Dieses gesagt, enteilte der helmumflatterte Hektor. | |
| ἀμφὶ δέ μιν σφυρὰ τύπτε καὶ αὐχένα δέρμα κελαινόν, | Oben schlug ihm den Nacken, und tief die Knöchel des schwarzen | |
| ἄντυξ ἣ πυμάτη ϑέεν ἀσπίδος ὀμφαλοέσσης. | Felles Rand, der rings am genabelten Schild' ihm umherlief. | |
| Γλαῦκος δ' Ἱππολόχοιο πάις καὶ Τυδέος υἱὸς | Glaukos nun, des Hippolochos' Sohn, und der Held Diomedes, | |
| ἐς μέσον ἀμφοτέρων συνίτην μεμαῶτε μάχεσϑαι. | 120 | Kamen hervor aus den Heeren gerannt in Begierde des Kampfes. |
| οἳ δ' ὅτε δὴ σχεδὸν ἦσαν ἐπ' ἀλλήλοισιν ἰόντες, | Als sie nunmehr sich genaht, die Eilenden gegeneinander, | |
| τὸν πρότερος προσέειπε βοὴν ἀγαϑὸς Διομήδης· | Redete also zuerst der Rufer im Streit Diomedes: | |
| »τίς δὲ σύ ἐσσι, φέριστε, καταϑνητῶν ἀνϑρώπων; | Wer doch bist du, Edler, der sterblichen Erdebewohner? | |
| οὐ μὲν γάρ ποτ' ὄπωπα μάχῃ ἔνι κυδιανείρῃ | Nie ersah ich ja dich in männerehrender Feldschlacht | |
| τὸ πρίν· ἀτὰρ μὲν νῦν γε πολὺ προβέβηκας ἁπάντων | 125 | Vormals; aber anjetzt erhebst du dich weit vor den andern, |
| σῷ ϑάρσει, ὅτ' ἐμὸν δολιχόσκιον ἔγχος ἔμεινας. | Kühnes Muts, da du meiner gewaltigen Lanze dich darstellst. | |
| δυστήνων δέ τε παῖδες ἐμῷ μένει ἀντιάουσιν. | Meiner Kraft begegnen nur Söhn' unglücklicher Eltern! | |
| εἰ δέ τις ἀϑανάτων γε κατ' οὐρανοῦ εἰλήλουϑας, | Aber wofern du ein Gott herabgekommen vom Himmel, | |
| οὐκ ἂν ἐγώ γε ϑεοῖσιν ἐπουρανίοισι μαχοίμην. | Nimmer alsdann begehr' ich mit himmlischen Mächten zu kämpfen. | |
| οὐδὲ γὰρ οὐδὲ Δρύαντος ὑὸς κρατερὸς Λυκόοργος | 130 | Nicht des Dryas Erzeugter einmal, der starke Lykurgos, |
| δὴν ἦν, ὅς ῥα ϑεοῖσιν ἐπουρανίοισιν ἔριζεν· | Lebete lang', als gegen des Himmels Mächt' er gestrebet: | |
| ὅς ποτε μαινομένοιο Διωνύσοιο τιϑήνας | Welcher vordem Dionysos des Rasenden Ammen verfolgend | |
| σεῦε κατ' ἠγάϑεον Νυσήιον, αἳ δ' ἅμα πᾶσαι | Scheucht' auf dem heiligen Berge Nysseion; alle zugleich nun | |
| ϑύσϑλα χαμαὶ κατέχευαν, ὑπ' ἀνδροφόνοιο Λυκούργου | Warfen die laubigen Stäbe dahin, da der Mörder Lykurgos | |
| ϑεινόμεναι βουπλῆγι. Διώνυσος δὲ φοβηϑεὶς | 135 | Wild mit dem Stachel sie schlug; auch selbst Dionysos voll Schreckens |
| δύσεϑ' ἁλὸς κατὰ κῦμα, Θέτις δ' ὑπεδέξατο κόλπῳ | Taucht' in die Woge des Meers, und Thetis nahm in den Schoß ihn, | |
| δειδιότα· κρατερὸς γὰρ ἔχε τρόμος ἀνδρὸς ὁμοκλῇ. | Welcher erbebt', angstvoll vor der drohenden Stimme des Mannes. | |
| τῷ μὲν ἔπειτ' ὀδύσαντο ϑεοὶ ῥεῖα ζώοντες, | Jenem zürnten darauf die ruhig wartenden Götter, | |
| καί μιν τυφλὸν ἔϑηκε Κρόνου πάις· οὐδ' ἄρ' ἔτι δὴν | Und ihn blendete Zeus der Donnerer; auch nicht lange | |
| ἦν, ἐπεὶ ἀϑανάτοισιν ἀπήχϑετο πᾶσι ϑεοῖσιν. | 140 | Lebt' er hinfort, denn verhaßt war er allen unsterblichen Göttern. |
| οὐδ' ἂν ἐγὼ μακάρεσσι ϑεοῖς ἐϑέλοιμι μάχεσϑαι. | Nicht mit seligen Göttern daher verlang' ich zu kämpfen. | |
| εἰ δέ τίς ἐσσι βροτῶν οἳ ἀρούρης καρπὸν ἔδουσιν, | Wenn du ein Sterblicher bist, und genährt von Früchten des Feldes; | |
| ἆσσον ἴϑ', ὥς κεν ϑᾶσσον ὀλέϑρου πείραϑ' ἵκηαι.« | Komm dann heran, daß du eilig das Ziel des Todes erreichest. | |
| τὸν δ' αὖϑ' Ἱππολόχοιο προσηύδαε φαίδιμος υἱός· | Ihm antwortete drauf Hippolochos edler Erzeugter: | |
| »Τυδεΐδη μεγάϑυμε, τί ἦ γενεὴν ἐρεείνεις; | 145 | Tydeus' mutiger Sohn, was fragst du nach meinem Geschlechte? |
| οἵη περ φύλλων γενεή, τοίη δὲ καὶ ἀνδρῶν. | Gleich wie Blätter im Walde, so sind die Geschlechte der Menschen; | |
| φύλλα τὰ μέν τ' ἄνεμος χαμάδις χέει, ἄλλα δέ ϑ' ὕλη | Einige streuet der Wind auf die Erd' hin, andere wieder | |
| τηλεϑάουσα φύει – ἔαρος δ' ἐπιγίγνεται ὥρη –· | Treibt der knospende Wald, erzeugt in des Frühlinges Wärme: | |
| ὣς ἀνδρῶν γενεὴ ἣ μὲν φύει, ἣ δ' ἀπολήγει. | So der Menschen Geschlecht, dies wächst, und jenes verschwindet. | |
| εἰ δ' ἐϑέλεις καὶ ταῦτα δαήμεναι ὄφρ' ἐὺ εἰδῇς, | 150 | Soll ich dir aber auch dieses verkündigen, daß du erkennest |
| ἡμετέρην γενεήν – πολλοὶ δέ μιν ἄνδρες ἴσασιν· | Unserer Väter Geschlecht; wiewohl es vielen bekannt ist: | |
| ἔστι πόλις Ἐφύρη μυχῷ Ἄργεος ἱπποβότοιο, | Ephyra heißt die Stadt in der rossenährenden Argos, | |
| ἔνϑα δὲ Σίσυφος ἔσκεν, ὃ κέρδιστος γένετ' ἀνδρῶν, | Wo einst Sisyphos war, der schlaueste unter den Männern, | |
| Σίσυφος Αἰολίδης· ὃ δ' ἄρα Γλαῦκον τέκεϑ' υἱόν, | Sisyphos, Äolos' Sohn; der zeugte sich Glaukos zum Sohne; | |
| αὐτὰρ Γλαῦκος ἔτικτεν ἀμύμονα Βελλεροφόντην. | 155 | Glaukos darauf erzeugte den herrlichen Bellerophontes, |
| τῷ δὲ ϑεοὶ κάλλος τε καὶ ἠνορέην ἐρατεινὴν | Welchem Schönheit die Götter und reizende Männerstärke | |
| ὤπασαν. αὐτάρ οἱ Προῖτος κακὰ μήσατο ϑυμῷ, | Schenketen. Aber Prötos ersann ihm Böses im Herzen: | |
| ὅς ῥ' ἐκ δήμου ἔλασσεν, ἐπεὶ πολὺ φέρτερος ἦεν, | Der aus dem Land' ihn vertrieb, dieweil er mächtig beherrschte | |
| Ἀργεΐων· Ζεὺς γάρ οἱ ὑπὸ σκήπτρῳ ἐδάμασσεν. | Argos' Volk, und Zeus ihm Gewalt und Scepter vertrauet. | |
| τῷ δὲ γυνὴ Προίτου ἐπεμήνατο δῖ' Ἄντεια | 160 | Jenem entbrannt' Anteia, des Prötos edle Gemahlin, |
| κρυπταδίῃ φιλότητι μιγήμεναι· ἀλλὰ τὸν οὔ τι | Daß sie in heimlicher Lieb' ihm nahete; doch er gehorcht' ihr | |
| πεῖϑ' ἀγαϑὰ φρονέοντα δαΐφρονα Βελλεροφόντην. | Nicht, der edelgesinnte verständige Bellerophontes. | |
| ἣ δὲ ψευσαμένη Προῖτον βασιλῆα προσηύδα· | Jetzo mit Lug erschien sie, und sprach zum Könige Prötos: | |
| ›τεϑναίης, ὦ Προῖτ', ἢ κάκτανε Βελλεροφόντην, | Tod dir, oder, o Prötos, erschlage du Bellerophontes, | |
| ὅς μ' ἔϑελεν φιλότητι μιγήμεναι οὐκ ἐϑελούσῃ.‹ | 165 | Welcher frech zuliebe mir nahete, wider mein Wollen. |
| ὣς φάτο· τὸν δὲ ἄνακτα χόλος λάβεν, οἷον ἄκουσεν. | Jene sprach's; und der König ereiferte, solches vernehmend. | |
| κτεῖναι μέν ῥ' ἀλέεινε, σεβάσσατο γὰρ τό γε ϑυμῷ· | Dennoch vermied er den Mord, denn graunvoll war der Gedank' ihm. | |
| πέμπε δέ μιν Λυκίηνδε, πόρεν δ' ὅ γε σήματα λυγρὰ | Aber er sandt' ihn gen Lykia hin, und traurige Zeichen | |
| γράψας ἐν πίνακι πτυκτῷ ϑυμοφϑόρα πολλά· | Gab er ihm, Todesworte geritzt auf gefaltetem Täflein: | |
| δεῖξαι δ' ἠνώγειν ᾧ πενϑερῷ, ὄφρ' ἀπόλοιτο. | 170 | Daß er dem Schwäher die Schrift darreicht', und das Leben verlöre. |
| αὐτὰρ ὃ βῆ. Λυκίηνδε ϑεῶν ὑπ' ἀμύμονι πομπῇ. | Jener wandelte hin, im Geleit obwaltender Götter. | |
| »ἀλλ' ὅτε δὴ Λυκίην ἷξε Ξάνϑον τε ῥέοντα, | Als er nunmehr gen Lykia kam, und dem strömenden Xanthos; | |
| προφρονέως μιν τῖεν ἄναξ Λυκίης εὐρείης. | Ehrt' ihn gewogenes Sinns der weiten Lykia König, | |
| ἐννῆμαρ ξείνισσε καὶ ἐννέα βοῦς ἱέρευσεν· | Gab neuntägigen Schmaus, und erschlug neun Stiere zum Opfer. | |
| ἀλλ' ὅτε δὴ δεκάτη ἐφάνη ῥοδοδάκτυλος Ἠώς, | 175 | Aber nachdem zum zehnten die rosige Eos emporstieg; |
| καὶ τότε μιν ἐρέεινε καὶ ᾔτεε σῆμα ἰδέσϑαι, | Jetzo fragt' er den Gast, und hieß ihn zeigen das Täflein, | |
| ὅττι ῥά οἱ γαμβροῖο παρὰ Προίτοιο φέροιτο. | Welches ihm sein Eidam, der herrschende Prötos gesendet. | |
| αὐτὰρ ἐπεὶ δὴ σῆμα κακὸν παρεδέξατο γαμβροῦ, | Als er nunmehr vernommen die Todesworte des Eidams; | |
| πρῶτον μέν ῥα Χίμαιραν ἀμαιμακέτην ἐκέλευσεν | Hieß er jenen zuerst die ungeheure Chimära | |
| πεφνέμεν· ἣ δ' ἄρ' ἔην ϑεῖον γένος οὐδ' ἀνϑρώπων, | 180 | Töten, die göttlicher Art, nicht menschlicher, dort emporwuchs: |
| πρόσϑε λέων ὄπιϑεν δὲ δράκων μέσση δὲ χίμαιρα, | Vorn ein Löw', und hinten ein Drach', und Geiß in der Mitte, | |
| δεινὸν ἀποπνείουσα πυρὸς μένος αἰϑομένοιο· | Schrecklich umher aushauchend die Macht des lodernden Feuers. | |
| καὶ τὴν μὲν κατέπεφνε ϑεῶν τεράεσσι πιϑήσας. | Doch er tötete sie, der unsterblichen Zeichen vertrauend. | |
| δεύτερον αὖ Σολύμοισι μαχέσσατο κυδαλίμοισιν· | Weiter darauf bekämpft' er der Solymer ruchtbare Völker; | |
| καρτίστην δὴ τήν γε μάχην φάτο δύμεναι ἀνδρῶν. | 185 | Diesen nannt' er den härtesten Kampf, den er kämpfte mit Männern. |
| τὸ τρίτον αὖ κατέπεφνεν Ἀμαζόνας ἀντιανείρας· | Drauf zum dritten erschlug er die männliche Hord' Amazonen. | |
| τῷ δ' ἄρ' ἀνερχομένῳ πυκινὸν δόλον ἄλλον ὕφαινεν· | Aber dem Kehrenden auch entwarf er betrügliche Täuschung: | |
| κρίνας ἐκ Λυκίης εὐρείης φῶτας ἀρίστους | Wählend die tapfersten Männer des weiten Lykierlandes | |
| εἷσε λόχον. τοὶ δ' οὔ τι πάλιν οἶκόνδε νέοντο· | Legt' er im Hinterhalt; allein nicht kamen sie heimwärts, | |
| πάντας γὰρ κατέπεφνεν ἀμύμων Βελλεροφόντης. | 190 | Alle vertilgte sie dort der untadliche Bellerophontes. |
| ἀλλ' ὅτε δὴ γίγνωσκε ϑεοῦ γόνον ἠὺν ἐόντα, | Als er nunmehr erkannte den Held aus göttlichem Samen; | |
| αὐτοῦ μιν κατέρυκε, δίδου δ' ὅ γε ϑυγατέρα ἥν, | Hielt er dort ihn zurück, und gab ihm die blühende Tochter, | |
| δῶκε δέ οἱ τιμῆς βασιληίδος ἥμισυ πᾶσης· | Gab ihm auch die Hälfte der Königsehre zum Anteil. | |
| καὶ μέν οἱ Λύκιοι τέμενος τάμον ἔξοχον ἄλλων, | Auch die Lykier maßen ihm auserlesene Güter, | |
| καλόν, φυταλιῆς καὶ ἀρούρης, ὄφρα νέμοιτο. | 195 | Schön an Ackergefild' und Pflanzungen, daß er sie baute. |
| ἣ δ' ἔτεκε τρία τέκνα δαΐφρονι Βελλεροφόντῃ, | Jene gebar drei Kinder dem feurigen Bellerophontes, | |
| Ἴσανδρόν τε καὶ Ἱππόλοχον καὶ Λαοδάμειαν· | Erst Isandros, Hippolochos dann, und Laodameia. | |
| Λαοδαμείῃ μὲν παρελέξατο μητίετα Ζεύς, | Laodameia ruht' in Zeus des Kroniden Umarmung; | |
| ἣ δ' ἔτεκ' ἀντίϑεον Σαρπηδόνα χαλκοκορυστήν. | Und sie gebar Sarpedon, den götterähnlichen Streiter. | |
| »ἀλλ' ὅτε δὴ καὶ κεῖνος ἀπήχϑετο πᾶσι ϑεοῖσιν, | 200 | Aber nachdem auch jener den Himmlischen allen verhaßt ward; |
| ἦ τοι ὃ κὰπ πεδίον τὸ Ἀλήιον οἶος ἀλᾶτο | Irrt' er umher einsam, sein Herz von Kummer verzehret, | |
| ὃν ϑυμὸν κατέδων, πάτον ἀνϑρώπων ἀλεείνων· | Durch die aleïsche Flur, der Sterblichen Pfade vermeidend. | |
| Ἴσανδρον δέ οἱ υἱὸν Ἄρης ἆτος πολέμοιο | Seinen Sohn Isandros ermordete Ares der Wütrich, | |
| μαρνάμενον Σολύμοισι κατέκτανε κυδαλίμοισιν· | Als er kämpft' in der Schlacht mit der Solymer ruchtbaren Völkern. | |
| τὴν δὲ χολωσαμένη χρυσήνιος Ἄρτεμις ἔκτα. | 205 | Artemis raubt' ihm die Tochter, die Lenkerin goldener Zügel. |
| Ἱππόλοχος δ' ἐμὲ τίκτε, καὶ ἐκ τοῦ φημὶ γενέσϑαι· | Aber Hippolochos zeugete mich, ihn rühm' ich als Vater. | |
| πέμπε δέ μ' ἐς Τροίην καί μοι μάλα πόλλ' ἐπέτελλεν | Dieser sandt' in Troja mich her, und ermahnte mich sorgsam, | |
| αἰὲν ἀριστεύειν καὶ ὑπείροχον ἔμμεναι ἄλλων | Immer der erste zu sein, und vorzustreben vor andern; | |
| μηδὲ γένος πατέρων αἰσχυνέμεν, οἳ μέγ' ἄριστοι | Daß ich der Väter Geschlecht nicht schändete, welches die ersten | |
| ἔν τ' Ἐφύρῃ ἐγένοντο καὶ ἐν Λυκίῃ εὐρείῃ. | 210 | Männer in Ephyra zeugt', und im weiten Lykierlande. |
| ταύτης τοι γενεῆς τε καὶ αἵματος εὔχομαι εἶναι.« | Sieh aus solchem Geschlecht und Blute dir rühm' ich mich jetzo. | |
| ὣς φάτο· γήϑησεν δὲ βοὴν ἀγαϑὸς Διομήδης. | Sprachs; doch freudig vernahm es der Rufer im Streit Diomedes. | |
| ἔγχος μὲν κατέπηξεν ἐνὶ χϑονὶ πουλυβοτείρῃ, | Eilend steckt' er die Lanz' in die nahrungsprossende Erde, | |
| αὐτὰρ ὃ μειλιχίοισι προσηύδαε ποιμένα λαῶν· | Und mit freundlicher Rede zum Völkerhirten begann er: | |
| »ἦ ῥά νύ μοι ξεῖνος πατρώιός ἐσσι παλαιόις· | 215 | Wahrlich, so bist du mir Gast aus Väterzeiten schon vormals! |
| Οἰνεὺς γάρ ποτε δῖος ἀμύμονα Βελλεροφόντην | Öneus der Held hat einst den untadlichen Bellerophontes | |
| ξείνισ' ἐνὶ μεγάροισιν ἐείκοσιν ἤματ' ἐρύξας. | Gastlich im Hause geehrt, und zwanzig Tage geherbergt. | |
| οἳ δὲ καὶ ἀλλήλοισι πόρον ξεινήια καλά· | Jen' auch reichten einander zum Denkmal schöne Geschenke. | |
| Οἰνεὺς μὲν ζωστῆρα δίδου φοίνικι φαεινόν, | Öneus Ehrengeschenk war ein Leibgurt, schimmernd von Purpur, | |
| Βελλεροφόντης δὲ χρύσεον δέπας ἀμφικύπελλον, | 220 | Aber des Bellerophontes ein goldener Doppelbecher; |
| καί μιν ἐγὼ κατέλειπον ἰὼν ἐν δώμασ' ἐμοῖσιν. | Und ihn ließ ich scheidend zurück in meinem Palaste. | |
| Τυδέα δ' οὐ μέμνημαι, ἐπεί μ' ἔτι τυτϑὸν ἐόντα | Tydeus gedenk' ich nicht mehr; denn noch ein stammelnder Knabe | |
| κάλλιφ', ὅτ' ἐν Θήβῃσιν ἀπώλετο λαὸς Ἀχαιῶν. – | Blieb ich daheim, da vor Thebe das Volk der Achaier vertilgt ward. | |
| τῷ νῦν σοὶ μὲν ἐγὼ ξεῖνος φίλος Ἄργεϊ μέσσῳ | Also bin ich nunmehr dein Gastfreund mitten in Argos; | |
| εἰμί, σὺ δ' ἐν Λυκίῃ, ὅτε κεν τῶν δῆμον ἵκωμαι. | 225 | Du in Lykia mir, wann jenes Land ich besuche. |
| ἔγχεα δ' ἀλλήλων ἀλεώμεϑα καὶ δι' ὁμίλου· | Drum mit unseren Lanzen vermeiden wir uns im Getümmel. | |
| πολλοὶ μὲν γὰρ ἐμοὶ Τρῶες κλειτοί τ' ἐπίκουροι, | Viel ja sind der Troer mir selbst, und der rühmlichen Helfer, | |
| κτείνειν ὅν κε ϑεός γε πόρῃ καὶ ποσσὶ κιχείω, | Daß ich töte, wen Gott mir gewährt, und die Schenkel erreichen; | |
| πολλοὶ δ' αὖ σοὶ Ἀχαιοί, ἐναιρέμεν ὅν κε δύνηαι. | Viel' auch dir der Achaier, daß, welchen du kannst, du erlegest. | |
| τεύχεα δ' ἀλλήλοις ἐπαμείψομεν, ὄφρα καὶ οἵδε | 230 | Aber die Rüstungen beide vertauschen wir, daß auch die andern |
| γνῶσιν, ὅτι ξεῖνοι πατρώιοι εὐχόμεϑ' εἶναι.« | Schaun, wie wir Gäste zu sein aus Väterzeiten uns rühmen. | |
| ὣς ἄρα φωνήσαντε, καϑ' ἵππων ἀίξαντε | Also redeten jen', und herab von den Wagen sich schwingend, | |
| χεῖράς τ' ἀλλήλων λαβέτην καὶ πιστώσαντο. | Faßten sie beid' einander die Händ', und gelobten sich Freundschaft. | |
| ἔνϑ' αὖτε Γλαύκῳ Κρονίδης φρένας ἐξέλετο Ζεύς, | Doch den Glaukos erregte Zeus, daß er ohne Besinnung | |
| ὃς πρὸς Τυδεΐδην Διομήδεα τεύχε' ἄμειβεν | 235 | Gegen den Held Diomedes die Rüstungen, goldne mit ehrnen, |
| χρύσεα χαλκείων, ἑκατόμβοι' ἐννεαβοίων. | Wechselte, hundert Farren sie wert, neun Farren die andern. | |
| Ἕκτωρ δ' ὡς Σκαιάς τε πύλας καὶ φηγὸν ἵκανεν, | Als nun Hektor erreicht das skäische Tor und die Buche; | |
| ἀμφ' ἄρα μιν Τρώων ἄλοχοι ϑέον ἠδὲ ϑύγατρες | Jetzt umeilten ihn rings die troischen Weiber und Töchter, | |
| εἰρόμεναι παῖδάς τε κασιγνήτους τε ἔτας τε | Forschend dort nach Söhnen, nach Brüdern dort, und Verwandten, | |
| καὶ πόσιας. ὃ δ' ἔπειτα ϑεοῖς εὔχεσϑαι ἀνώγει | 240 | Und den Gemahlen im Heer. Er ermahnte sie, alle die Götter |
| πάσας ἑξείης· πολλῇσι δὲ κήδε' ἐφῆπτο. | Anzuflehn; doch vielen war Weh und Jammer verhänget. | |
| ἀλλ' ὅτε δὴ Πριάμοιο δόμον περικαλλέ' ἵκανεν, | Als er den schönen Palast des Priamos jetzo erreichte, | |
| ξεστῆς αἰϑούσῃσι τετυγμένον – αὐτὰρ ἐν αὐτῷ | Der mit gehauenen Hallen geschmückt war: aber im Innern | |
| πεντήκοντ' ἔνεσαν ϑάλαμοι ξεστοῖο λίϑοιο, | Waren fünfzig Gemächer aus schöngeglättetem Marmor, | |
| πλησίοι ἀλλήλων δεδμημένοι· ἔνϑα δὲ παῖδες | 245 | Dicht aneinander gebaut; es ruheten drinnen des Königs |
| κοιμῶντο Πριάμοιο παρὰ μνηστῇς ἀλόχοισιν. | Priamos Söhn' umher, mit blühenden Gattinnen wohnend; | |
| κουράων δ' ἑτέρωϑεν ἐναντίοι ἔνδοϑεν αὐλῆς | Aber den Töchtern waren zur anderen Seite des Hofes | |
| δώδεκ' ἔσαν τέγεοι ϑάλαμοι ξεστοῖο λίϑοιο, | Zwölf gewölbte Gemächer aus schöngeglättetem Marmor, | |
| πλησίοι ἀλλήλων δεδμημένοι· ἔνϑα δὲ γαμβροὶ | Dicht aneinander gebaut; es ruheten drinnen des Königs | |
| κοιμῶντο Πριάμοιο παρ' αἰδοίῃς ἀλόχοισιν· – | 250 | Priamos Eidam' umher, mit züchtigen Gattinnen wohnend: |
| ἔνϑα οἱ ἠπιόδωρος ἐναντίη ἤλυϑε μήτηρ | Dort begegnete Hektor der gernausteilenden Mutter, | |
| Λαοδίκην ἐσάγουσα ϑυγατρῶν εἶδος ἀρίστην, | Die zu Laodike ging, der holdesten Tochter an Bildung. | |
| ἔν τ' ἄρα οἱ φῦ χειρὶ ἔπος τ' ἔφατ' ἐκ τ' ὀνόμαζεν· | Jene faßt ihm die Hand, und redete, also beginnend: | |
| »τέκνον, τίπτε λιπὼν πόλεμον ϑρασὺν εἰλήλουϑας; | Lieber Sohn, wie kommst du, das wütende Treffen verlassend? | |
| ἦ μάλα δὴ τείρουσι δυσώνυμοι υἷες Ἀχαιῶν | 255 | Hart uns drängen fürwahr die entsetzlichen Männer Achaias, |
| μαρναμένους περὶ ἄστυ, σὲ δ' ἐνϑάδε ϑυμὸς ἀνῆκεν | Kämpfend um unsere Stadt; daß nun dein Herz dich hierhertrieb, | |
| ἐλϑόντ' ἐξ ἄκρης πόλιος Διὶ χεῖρας ἀνασχεῖν; | Deine Hände zu Zeus von Ilios Burg zu erheben! | |
| ἀλλὰ μέν, ὄφρα κέ τοι μελιηδέα οἶνον ἐνείκω, | Aber verzeuch, bis ich jetzo des süßen Weines dir bringe; | |
| ὡς σπείσῃς Διὶ πατρὶ καὶ ἄλλοις ἀϑανάτοισιν | Daß du Zeus dem Vater zuvor und den anderen Göttern | |
| πρῶτον, ἔπειτα δὲ καὐτὸς ὀνήσεαι, αἴ κε πίῃσϑα· | 260 | Sprengest, und dann auch selber des Labetrunks dich erfreuest. |
| ἀνδρὶ δὲ κεκμηῶτι μένος μέγα οἶνος ἀέξει, | Denn dem ermüdeten Mann ist der Wein ja kräftige Stärkung, | |
| ὡς τύνη κέκμηκας ἀμύνων σοῖσιν ἔτῃσιν.« | So wie du dich ermüdet, im Kampf für die deinigen stehend. | |
| τὴν δ' ἠμείβετ' ἔπειτα μέγας κορυϑαίολος Ἕκτωρ· | Ihr antwortete drauf der helmumflatterte Hektor: | |
| »μή μοι οἶνον ἄειρε μελίφρονα, πότνια μῆτερ, | Nicht des süßen Weins mir gebracht, ehrwürdige Mutter, | |
| μή μ' ἀπογυιώσῃς, μένεος δ' ἀλκῆς τε λάϑωμαι· | 265 | Daß du nicht mich entnervst, und des Muts und der Kraft ich vergesse. |
| χερσὶ δ' ἀνίπτοισιν Διὶ λειβέμεν αἴϑοπα οἶνον | Ungewaschener Hand Zeus dunkelen Wein zu sprengen, | |
| ἅζομαι, οὐδέ πῃ ἔστι κελαινεφέι Κρονίωνι | Scheu ich mich; nimmer geziemts, den schwarzumwölkten Kronion | |
| αἵματι καὶ λύϑρῳ πεπαλαγμένον εὐχετάεσϑαι. | Anzuflehn, mit Blut und Kriegesstaube besudelt. | |
| ἀλλὰ σὺ μὲν πρὸς νηὸν Ἀϑηναίης ἀγελείης | Aber wohlan, zum Tempel der Siegerin Pallas Athene | |
| ἔρχεο σὺν ϑυέεσσιν, ἀολλίσσασα γεραιάς· | 270 | Gehe mit Räuchwerk hin, die edleren Weiber versammelnd; |
| πέπλον δ', ὅς τίς τοι χαριέστατος ἠδὲ μέγιστος | Und das Gewand, so dir das köstlichste scheint und das größte | |
| ἔστιν ἐνὶ μεγάρῳ καί τοι πολὺ φίλτατος αὐτῇ, | Aller umher im Palast, und dir das geliebteste selber, | |
| τὸν ϑὲς Ἀϑηναίης ἐπὶ γούνασιν ἠυκόμοιο· | Solches leg' auf die Kniee der schöngelockten Athene, | |
| καί οἱ ὑποσχέσϑαι δύο καὶ δέκα βοῦς ἐνὶ νηῷ | Und gelob' in dem Tempel ihr zwölf untadliche Kühe, | |
| ἤνις ἠκέστας ἱερευσέμεν, αἴ κ' ἐλεήσῃ | 275 | Jährige, ungezähmte, zu heiligen: wenn sie der Stadt sich, |
| ἄστυ τε καὶ Τρώων ἀλόχους καὶ νήπια τέκνα, | Und der troischen Fraun und zarten Kinder erbarmet; | |
| αἴ κεν Τυδέος υἱὸν ἀπόσχῃ Ἰλίου ἱρῆς | Wenn sie des Tydeus Sohn von der heiligen Ilios abwehrt, | |
| ἄγριον αἰχμητήν, κρατερὸν μήστωρα φόβοιο. | Jenen Stürmer der Schlacht, den gewaltigen Schreckengebieter. | |
| ἀλλὰ σὺ μὲν πρὸς νηὸν Ἀϑηναίης ἀγελείης | Auf denn, gehe zum Tempel der Siegerin Pallas Athene | |
| ἔρχευ· εγὼ δὲ Πάριν μετελεύσομαι ὄφρα καλέσσω, | 280 | Du; dieweil zu Paris ich wandele, jenen zu rufen, |
| αἴ κ' ἐϑέλῃσ' εἰπόντος ἀκουέμεν. ὥς κέ οἱ αὖϑι | Ob er vielleicht noch achte des Rufenden. O daß die Erd' ihn | |
| γαῖα χάνοι· μέγα γάρ μιν Ὀλύμπιος ἔτρεφε πῆμα | Lebend verschläng'! Ihn erschuf zum Verderben der Gott des Olympos | |
| Τρωσί τε καὶ Πριάμῳ μεγαλήτορι τοῖό τε παισίν. | Trojas Volk, und Priamos selbst, und den Söhnen des Herrschers. | |
| εἰ κεῖνόν γε ἴδοιμι κατελϑόντ' Ἄιδος εἴσω, | Säh' ich jenen versunken, hinab in Aïdes Wohnung; | |
| φαίην κεν φρέν' ἀτέρπου ὀιζύος ἐκλελαϑέσϑαι.« | 285 | Dann vergäß' ich im Herzen des unerfreulichen Elends! |
| ὣς ἔφαϑ'· ἣ δὲ μολοῦσα ποτὶ μέγαρ' ἀμφιπόλοισιν | Jener sprach's; und die Mutter ins Haus sich wendend, beschied dort | |
| κέκλετο· ταὶ δ' ἄρ' ἀόλλισσαν κατὰ ἄστυ γεραιάς. | Mägd' in die Stadt; und sie riefen die Schar der edleren Weiber. | |
| αὐτὴ δ' ἐς ϑάλαμον κατεβήσετο κηώεντα, | Selbst dann stieg sie hinab in die lieblich duftende Kammer, | |
| ἔνϑ' ἔσαν οἱ πέπλοι παμποίκιλοι, ἔργα γυναικῶν | Wo sie die schönen Gewande verwahrete, reich an Erfindung, | |
| Σιδονίων, τὰς αὐτὸς Ἀλέξανδρος ϑεοειδὴς | 290 | Werke sidonischer Fraun, die der göttliche Held Alexandros |
| ἤγαγε Σιδονίηϑεν, ἐπιπλὼς εὐρέα πόντον, | Selbst aus Sidon gebracht, weithin die Wogen durchschiffend, | |
| τὴν ὁδὸν ἣν Ἑλένην περ ἀνήγαγεν εὐπατέρειαν. | Als er Helena heim die Edelentsprossene führte. | |
| τῶν ἕν' ἀειραμένη Ἑκάβη φέρε δῶρον Ἀϑήνῃ, | Deren enthub itzt Hekabe eins zum Geschenk der Athene, | |
| ὃς κάλλιστος ἔην ποικίλμασιν ἠδὲ μέγιστος, | Welches das größeste war, und das schönste zugleich an Erfindung: | |
| ἀστὴρ δ' ὣς ἀπέλαμπεν, ἔκειτο δὲ νείατος ἄλλων. | 295 | Hell wie ein Stern, so strahlt' es, und lag am untersten aller. |
| βῆ δ' ἰέναι, πολλαὶ δὲ μετεσσεύοντο γεραιαί. | Und sie enteilt', ihr folgten gedrängt die edleren Weiber. | |
| αἳ δ' ὅτε νηὸν ἵκανον Ἀϑήνης ἐν πόλει ἄκρῃ, | Als sie nunmehr auf der Burg den Tempel erreicht der Athene; | |
| τῇσι ϑύρας ὤιξε Θεανὼ καλλιπάρῃος | Öffnete jenen die Pforte die anmutvolle Theano, | |
| Κισσηίς, ἄλοχος Ἀντήνορος ἱπποδάμοιο· | Kisseus Tochter, vermählt dem Gaulbezähmer Antenor, | |
| τὴν γὰρ Τρῶες ἔϑηκαν Ἀϑηναίης ἱέρειαν. | 300 | Welche die Troer geweiht zur Priesterin Pallas Athenens. |
| αἳ δ' ὀλολυγῇ πᾶσαι Ἀϑήνῃ χεῖρας ἀνέσχον. | All' erhuben die Hände mit jammerndem Laut zur Athene. | |
| ἣ δ' ἄρα πέπλον ἑλοῦσα Θεανὼ καλλιπάρῃος | Aber es nahm das Gewand die anmutvolle Theano, | |
| ϑήκεν Ἀϑηναίης ἐπὶ γούνασιν ἠυκόμοιο· | Legt' es hin auf die Kniee der schöngelockten Athene, | |
| εὐχομένη δ' ἠρᾶτο Διὸς κούρῃ μεγάλοιο· | Flehete dann gelobend zu Zeus des Allmächtigen Tochter: | |
| »πότνι' Ἀϑηναίη, ἐρυσίπτολι, δῖα ϑεάων, | 305 | Pallas Athene voll Macht, Stadtschirmerin, edelste Göttin! |
| ἆξον δὴ ἔγχος Διομήδεος ἠδὲ καὶ αὐτὸν | Brich doch jetzo den Speer Diomedes'; aber ihn selber | |
| πρηνέα δὸς πεσέειν Σκαιῶν προπάροιϑε πυλάων, | Laß auf das Antlitz gestürzt vor dem skäischen Tore sich wälzen! | |
| ὄφρα τοι αὐτίκα νῦν δύο καὶ δέκα βοῦς ἐνὶ νηῷ | Daß wir jetzo sofort zwölf stattliche Küh' in dem Tempel, | |
| ἤνις ἠκέστας ἱερεύσομεν, αἴ κ' ἐλεήσῃς | Jährige, ungezähmte, dir heiligen: wenn du der Stadt dich, | |
| ἄστυ τε καὶ Τρώων ἀλόχους καὶ νήπια τέκνα.« | 310 | Und der troischen Fraun und zarten Kinder erbarmest! |
| ὣς ἔφατ' εὐχομένη· ἀνένευε δὲ Παλλὰς Ἀϑήνη. | Also sprach sie betend; es weigerte Pallas Athene. | |
| ὣς αἳ μέν ῥ' εὔχοντο Διὸς κούρῃ μεγάλοιο· | Während sie dort nun flehten zu Zeus des Allmächtigen Tochter; | |
| Ἕκτωρ δὲ πρὸς δώματ' Ἀλεξάνδροιο βεβήκει | Wandelte Hektor dahin zum schönen Palast Alexandros, | |
| καλά, τά ῥ' αὐτὸς ἔτευξε σὺν ἀνδράσιν, οἳ τότ' ἄριστοι | Welchen er selbst sich erbaut mit den kunsterfahrensten Männern | |
| ἦσαν ἐνὶ Τροίῃ ἐριβώλακι τέκτονες ἄνδρες· | 315 | Aller umher in Troja, dem Land hochscholliger Äcker: |
| οἵ οἱ ἐποίησαν ϑάλαμον καὶ δῶμα καὶ αὐλὴν | Diese bereiteten ihm das Gemach und den Saal und den Vorhof, | |
| ἐγγύϑι τε Πριάμοιο καὶ Ἕκτορος ἐν πόλει ἄκρῃ. | Hoch auf der Burg, und nahe bei Priamos Wohnung und Hektors. | |
| ἔνϑ' Ἕκτωρ εἰσῆλϑε διίφιλος, ἐν δ' ἄρα χειρὶ | Dort hinein ging Hektor, der göttliche; und in der rechten | |
| ἔγχος ἔχ' ἑνδεκάπηχυ· πάροιϑε δὲ λάμπετο δουρὸς | Trug er den Speer, elf Ellen an Läng'; und vorn an dem Schafte | |
| αἰχμὴ χαλκείη, περὶ δὲ χρύσεος ϑέε πόρκης. | 320 | Blinkte die eherne Schärf', umlegt mit goldenem Ringe. |
| τὸν δ' εὗρ' ἐν ϑαλάμῳ περὶ κάλλιμα τεύχε' ἕποντα, | Ihn im Gemach dort fand er, die stattlichen Waffen durchforschend, | |
| ἀσπίδα καὶ ϑώρηκα, καὶ ἀγκύλα τόξ' ἁφάοντα· | Panzer und Schild, und glättend das Horn des krummen Geschosses. | |
| Ἀργεΐη δ' Ἑλένη μετ' ἄρα δμῳῇσι γυναιξὶν | Aber Helena saß, die Argeierin, unter den Weibern | |
| ἧστο καὶ ἀμφιπόλοισι περικλυτὰ ἔργα κέλευεν. | Emsig, den Mägden umher anmutige Werke gebietend. | |
| τὸν δ' Ἕκτωρ νείκεσσεν ἰδὼν αἰσχροῖς ἐπέεσσιν· | 325 | Hektor schalt ihn erblickend, und rief die beschämenden Worte: |
| »δαιμόνι', οὐ μὲν καλὰ χόλον τόνδ' ἔνϑεο ϑυμῷ· | Sträflicher, nicht geziemt' es, so unmutsvoll zu ereifern! | |
| λαοὶ μὲν φϑινύϑουσι περὶ πτόλιν αἰπύ τε τεῖχος | Siehe das Volk verschwindet, um Stadt und türmende Mauer | |
| μαρνάμενοι, σέο δ' εἵνεκ' ἀυτή τε πτόλεμός τε | Kämpfend; und deinethalb ist Feldgeschrei und Getümmel | |
| ἄστυ τόδ' ἀμφιδέδηε. σὺ δ' ἂν μαχέσαιο καὶ ἄλλῳ, | Rings entbrannt um die Feste! Du zanktest ja selbst mit dem andern; | |
| ὅν τινά που μεϑιέντα ἴδοις στυγεροῦ πολέμοιο. | 330 | Welchen du wo saumselig ersähst zur traurigen Feldschlacht. |
| ἀλλ' ἄνα, μή τάχα ἄστυ πυρὸς δηίοιο ϑέρηται.« | Auf denn, ehe die Stadt in feindlicher Flamme verlodre! | |
| τὸν δ' αὖτε προσέειπεν Ἀλέξανδρος ϑεοειδής· | Ihm antwortete drauf der göttliche Held Alexandros: | |
| »Ἕκτορ, ἐπεί με κατ' αἶσαν ἐνείκεσας οὐδ' ὑπὲρ αἶσαν, | Hektor, dieweil du mit Recht mich tadeltest, nicht mit Unrecht; | |
| τοὔνεκά τοι ἐρέω· σὺ δὲ σύνϑεο καί μευ ἄκουσον. | Darum sag' ich dir an; doch du vernimm es, und höre. | |
| οὔ τοι ἐγὼ Τρώων τόσσον χόλῳ οὐδὲ νεμέσσι | 335 | Gar nicht wider die Troer so unmutsvoll und ereifert, |
| ἥμην ἐν ϑαλάμῳ, ἔϑελον δ' ἄχεϊ προτραπέσϑαι. | Saß ich hier im Gemach; zum Grame nur wollt' ich mich wenden. | |
| νῦν δέ με παρειποῦσ' ἄλοχος μαλακοῖς ἐπέεσσιν | Doch nun hat mich die Gattin mit freundlichen Worten beredet, | |
| ὥρμησ' ἐς πόλεμον, δοκέει δέ μοι ὧδε καὶ αὐτῷ | Auszugehn in die Schlacht; auch scheinet es also mir selber | |
| λώιον ἔσσεσϑαι· νίκη δ' ἐπαμείβεται ἄνδρας. | Besser hinfort zu sein; denn es wechselt der Sieg um die Männer. | |
| ἀλλ' ἄγε νῦν ἐπίμεινον, ἀρήια τεύχεα δύω· | 340 | Aber verzeuch, bis ich jetzo in Kriegesgerät mich gehüllet; |
| ἢ ἴϑ', ἐγὼ δὲ μέτειμι· κιχήσεσϑαι δέ σ' ὀίω.« | Oder geh, so folg' ich, und hoffe dich bald zu erreichen. | |
| ὣς φάτο· τὸν δ' οὔ τι προσέφη κορυϑαίολος Ἕκτωρ. | Jener sprach's; ihm erwiderte nichts der gewaltige Hektor. | |
| τὸν δ' Ἑλένη μύϑοισι προσηύδαε μειλιχίοισιν· | Aber Helena sprach mit hold liebkosenden Worten: | |
| »δᾶερ ἐμεῖο, κυνὸς κακομηχάνοο κρυοέσσης, | O mein Schwager, des schnöden, des unheilstiftenden Weibes! | |
| ὥς μ' ὄφελ' ἤματι τῷ, ὅτε με πρῶτον τέκε μήτηρ, | 345 | Hätte doch jenes Tags, da zuerst mich die Mutter geboren, |
| οἴχεσϑαι προφέρουσα κακὴ ἀνέμοιο ϑύελλα | Ungestüm ein Orkan mich entführt auf ein ödes Gebirg' hin, | |
| εἰς ὄρος ἢ εἰς κῦμα πολυφλοίσβοιο ϑαλάσσης, | Oder hinab in die Wogen des weitaufrauschenden Meeres, | |
| ἔνϑα με κῦμ' ἀπόερσε πάρος τάδε ἔργα γενέσϑαι. | Daß mich die Woge verschlang', eh solche Taten geschahen! | |
| αὐτὰρ ἐπεὶ τάδε γ' ὧδε ϑεοὶ κακὰ τεκμήραντο, | Aber nachdem dies Übel im Rat der Götter verhängt ward; | |
| ἀνδρὸς ἔπειτ' ὤφελλον ἀμείνονος εἶναι ἄκοιτις, | 350 | Wär' ich wenigstens doch des besseren Mannes Gemahlin, |
| ὃς ᾔδει νέμεσίν τε καὶ αἴσχεα πόλλ' ἀνϑρώπων. | Welcher empfände die Schmach und die kränkenden Reden der Menschen! | |
| τούτῳ δ' οὔτ' ἂρ νῦν φρένες ἔμπεδοι οὔτ' ἄρ' ὀπίσσω | Dem ist jetzo kein Herz voll Männlichkeit, noch wird hinfort ihm | |
| ἔσσονται· τῷ καί μιν ἐπαυρήσεσϑαι ὀίω. | Solches verliehn; und ich meine, genießen werd' er der Früchte! | |
| ἀλλ' ἄγε νῦν εἴσελϑε καὶ ἕζεο τῷδ' ἐπὶ δίφρῳ, | Aber o komm doch herein, und setze dich hier auf den Sessel, | |
| δᾶερ, ἐπεὶ σὲ μάλιστα πόνος φρένας ἀμφιβέβηκεν | 355 | Schwager; dieweil dir am meisten die Arbeit liegt an der Seele, |
| εἵνεκ' ἐμεῖο κυνὸς καὶ Ἀλεξάνδρου ἕνεκ' ἄτης, | Um mich schändliches Weib und die Freveltat Alexandros: | |
| οἷσιν ἐπὶ Ζεὺς ϑῆκε κακὸν μόρον, ὡς καὶ ὀπίσσω | Welchen ein trauriges Los Zeus sendete, daß wir hinfort auch | |
| ἀνϑρώποισι πελώμεϑ' ἀοίδιμοι ἐσσομένοισιν.« | Bleiben umher ein Gesang der kommenden Menschengeschlechter! | |
| τὴν δ' ἠμείβετ' ἔπειτα μέγας κορυϑαίολος Ἕκτωρ· | Ihr antwortete drauf der helmumflatterte Hektor: | |
| »μή με κάϑιζ', Ἑλένη, φιλέουσά περ· οὐδέ με πείσεις· | 360 | Heiße mich, Helena, nicht so freundlich sitzen; ich darf nicht |
| ἤδη γάρ μοι ϑυμὸς ἐπέσσυται, ὄφρ' ἐπαμύνω | Denn schon dringt mir das Herz mit Heftigkeit, daß ich den Troern | |
| Τρώεσσ', οἳ μέγ' ἐμεῖο ποϑὴν ἀπεόντος ἔχουσιν. | Helfe, die sehnsuchtsvoll nach mir Abwesenden umschaun. | |
| ἀλλὰ σύ γ' ὄρνυϑι τοῦτον, ἐπειγέσϑω δὲ καὶ αὐτός, | Aber du muntere diesen nur auf, auch treib' er sich selber; | |
| ὥς κεν ἔμ' ἔντοσϑεν πόλιος καταμάρψῃ ἐόντα. | Daß er noch in den Mauren der Stadt mich wieder erreiche | |
| καὶ γὰρ ἐγὼν οἶκόνδ' ἐσελεύσομαι, ὄφρα ἴδωμαι | 365 | Denn ich will in mein Haus zuvor eingehn, um zu schauen |
| οἰκῆας ἄλοχόν τε φίλην καὶ νήπιον υἱόν. | Mein Gesind', und das liebende Weib, und das stammelnde Söhnlein. | |
| οὐ γὰρ οἶδ', ἢ ἔτι σφιν ὑπότροπος ἵξομαι αὖτις | Denn wer weiß, ob ich wieder zurück zu den Meinigen kehre, | |
| ἢ ἤδη μ' ὑπὸ χερσὶ ϑεοὶ δαμάουσιν Ἀχαιῶν.« | Oder jetzt durch der Danaer Hand mich die Götter bezwingen. | |
| ὣς ἄρα φωνήσας ἀπέβη κορυϑαίολος Ἕκτωρ· | Dieses gesagt, enteilte der helmumflatterte Hektor. | |
| αἶψα δ' ἔπειϑ' ἵκανε δόμους ἐὺ ναιετάοντας. | 370 | Bald erreicht' er darauf die wohlgebauete Wohnung. |
| οὐ δ' εὗρ' Ἀνδρομάχην λευκώλενον ἐν μεγάροισιν, | Doch nicht fand er die schöne Andromache dort in den Kammern; | |
| ἀλλ' ἥ γε ξὺν παιδὶ καὶ ἀμφιπόλῳ ἐυπέπλῳ | Sondern zugleich mit dem Kind und der Dienerin, schönes Gewandes, | |
| πύργῳ ἐφεστήκει γοάουσά τε μυρομένη τε. | Stand sie annoch auf dem Turm, und jammerte, seufzend und weinend. | |
| Ἕκτωρ δ' ὡς οὐκ ἔνδον ἀμύμονα τέτμεν ἄκοιτιν, | Als nun Hektor daheim nicht fand die untadliche Gattin, | |
| ἔστη ἐπ' οὐδὸν ἰών, μετὰ δὲ δμῳῇσιν ἔειπεν· | 375 | Trat er zur Schwelle hinan, und rief den Mägden des Hauses: |
| »εἰ δ' ἄγε μοι, δμῳαί, νημερτέα μυϑήσασϑε· | Auf wohlan, ihr Mägde, verkündiget schnell mir die Wahrheit. | |
| πῇ ἔβη Ἀνδρομάχη λευκώλενος ἐκ μεγάροιο; | Wohin ging die schöne Andromache aus dem Palaste? | |
| ἠέ πῃ ἐς γαλόων ἢ εἰνατέρων ἐυπέπλων | Ob sie zu Schwestern des Manns, ob zu stattlichen Frauen der Schwäger, | |
| ἢ ἐς Ἀϑηναίης ἐξοίχεται, ἔνϑα περ ἄλλαι | Oder zum Haus Athenens sie eilete, wo auch die andern | |
| Τρῳαὶ ἐυπλόκαμοι δεινὴν ϑεὸν ἱλάσκονται;« | 380 | Lockigen Troerinnen die schreckliche Göttin versöhnen? |
| τὸν δ' αὖτ' ὀτρηρὴ ταμίη πρὸς μῦϑον ἔειπεν· | Ihm antwortete drauf die emsige Schaffnerin also: | |
| »Ἕκτορ, ἐπεὶ μάλ' ἄνωγας ἀληϑέα μυϑήσασϑαι· | Hektor, weil du gebeutst, die Wahrheit dir zu verkünden; | |
| οὔτε πῃ ἐς γαλόων οὔτ' εἰνατέρων ἐυπέπλων | Nicht zu Schwestern des Manns, noch zu stattlichen Frauen der Schwäger, | |
| οὔτ' ἐς Ἀϑηναίης ἐξοίχεται, ἔνϑα περ ἄλλαι | Oder zum Haus Athenens enteilte sie, wo auch die andern | |
| Τρῳαὶ ἐυπλόκαμοι δεινὴν ϑεὸν ἱλάσκονται. | 385 | Lockigen Troerinnen die schreckliche Göttin versöhnen; |
| ἀλλ' ἐπὶ πύργον ἔβη μέγαν Ἰλίου, οὕνεκ' ἄκουσεν | Sondern den Turm erstieg sie von Ilios, weil sie gehöret, | |
| τείρεσϑαι Τρῶας, μέγα δὲ κράτος εἶναι Ἀχαιῶν. | Daß der Achaier Macht siegreich die Troer bestürme. | |
| ἣ μὲν δὴ πρὸς τεῖχος ἐπειγομένη ἀφικάνει, | Eben geht sie hinaus mit eilendem Schritte zur Mauer, | |
| μαινομένῃ ἐικυῖα· φέρει δ' ἅμα παῖδα τιϑηνη.« | Einer Rasenden gleich; und die Wärterin trägt ihr das Kind nach. | |
| ἦ ῥα γυνὴ ταμίη· ὃ δ' ἀπέσσυτο δώματος Ἕκτωρ | 390 | Also sprach zu Hektor die Schaffnerin; schnell aus der Wohnung |
| τὴν αὐτὴν ὁδὸν αὖτις ἐυκτιμένας κατ' ἀγυιάς. | Eilt' er den Weg zurück durch die wohlbebaueten Gassen. | |
| εὖτε πύλας ἵκανε διερχόμενος μέγα ἄστυ | Als er das skäische Tor, die gewaltige Feste durchwandelnd, | |
| Σκαιάς, τῇ ἄρ' ἔμελλε διεξίμεναι πεδίονδε, | Jetzo erreicht, wo hinaus sein Weg ihn führt' ins Gefilde; | |
| ἔνϑ' ἄλοχος πολύδωρος ἐναντίη ἦλϑε ϑέουσα | Kam die reiche Gemahlin Andromache eilendes Laufes | |
| Ἀνδρομάχη, ϑυγάτηρ μεγαλήτορος Ἠετίωνος, | 395 | Gegen ihn her, des edlen Eëtions blühende Tochter: |
| Ἠετίων, ὃς ἔναιεν ὑπὸ Πλάκῳ ὑληέσσῃ, | Denn Eëtion wohnt' am waldigen Hange des Plakos, | |
| Θήβῃ ὑποπλακίῃ, Κιλίκεσσ' ἄνδρεσσιν ἀνάσσων· | In der plakischen Thebe, Kilikiens Männer beherrschend, | |
| τοῦ περ δὴ ϑυγάτηρ ἔχεϑ' Ἕκτορι χαλκοκορυστῇ. | Und er vermählte die Tochter dem erzumschimmerten Hektor, | |
| ἥ οἱ ἔπειτ' ἤντησ', ἅμα δ' ἀμφίπολος κίεν αὐτῇ | Diese begegnet' ihm jetzt; die Dienerin aber ihr folgend | |
| παῖδ' ἐπὶ κόλπῳ ἔχουσ' ἀταλάφρονα, νήπιον αὔτως, | 400 | Trug an der Brust das zarte, noch ganz unmündige Knäblein; |
| Ἑκτορίδην ἀγαπητὸν ἀλίγκιον ἀστέρι καλῷ, | Hektors einzigen Sohn, dem schimmernden Sterne vergleichbar. | |
| τόν ῥ' Ἕκτωρ καλέεσκε Σκαμάνδριον, αὐτὰρ οἱ ἄλλοι | Hektor nannte den Sohn Skamandrios, aber die andern | |
| Ἀστυάνακτ'· οἶος γὰρ ἐρύετο Ἴλιον Ἕκτωρ. | Nannten Astyanax ihn, denn allein schirmt' Ilios Hektor. | |
| ἦ τοι ὃ μὲν μείδησεν ἰδὼν ἐς παῖδα σιωπῇ· | Siehe mit Lächeln blickte der Vater still auf das Knäblein, | |
| Ἀνδρομάχη δέ οἱ ἄγχι παρίστατο δάκρυ χέουσα | 405 | Aber neben ihn trat Andromache, Tränen vergießend, |
| ἔν τ' ἄρα οἱ φῦ χειρὶ ἔπος τ' ἔφατ' ἔκ τ' ὀνόμαζεν· | Drückt' ihm freundlich die Hand, und redete, also beginnend: | |
| »δαιμόνιε, φϑίσει σε τὸ σὸν μένος, οὐδ' ἐλεαίρεις | Trautester Mann, dich tötet dein Mut noch! und du erbarmst dich | |
| παῖδά τε νηπίαχον καὶ ἔμ' ἄμμορον, ἣ τάχα χήρη | Nicht des stammelnden Kindes, noch mein des elenden Weibes, | |
| σεῦ ἔσομαι· τάχα γάρ σε κατακτενέουσιν Ἀχαιοὶ | Ach bald Witwe von dir! denn dich töten gewiß die Achaier, | |
| πάντες ἐφορμηϑέντες. ἐμοὶ δέ κε κέρδιον εἴη | 410 | Alle daher dir stürmend! Allein mir wäre das beste, |
| σεῦ ἀφαρματούσῃ χϑόνα δύμεναι· οὐ γὰρ ἔτ' ἄλλη | Deiner beraubt, in die Erde hinabzusinken; denn weiter | |
| ἔσται ϑαλπωρή, ἐπεὶ ἂν σύ γε πότμον ἐπίσπῃς, | Ist kein Trost mir übrig, wenn du dein Schicksal vollendest, | |
| ἀλλ' ἄχε'· οὐδέ μοι ἔστι πατὴρ καὶ πότνια μήτηρ. | Sondern Weh! und ich habe nicht Vater mehr noch Mutter! | |
| ἦ τοι γὰρ πατέρ' ἁμὸν ἀπέκτανε δῖος Ἀχιλλεύς, | Meinen Vater erschlug ja der göttliche Streiter Achilleus, | |
| ἐκ δὲ πόλιν πέρσεν Κιλίκων ἐὺ ναιετάουσαν | 415 | Und verhehrte die Stadt, von kilikischen Männern bevölkert, |
| Θήβην ὑψίπυλον· κατὰ δ' ἔκτανεν Ἠετίωνα· – | Thebe mit ragendem Tor: den Eëtion selber erschlug er, | |
| οὐ δέ μιν ἐξενάριξε, σεβάσσατο γὰρ τό γε ϑυμῷ, | Doch nicht nahm er die Waffen; denn graunvoll war der Gedank' ihm; | |
| ἀλλ' ἄρα μιν κατέκηε σὺν ἔντεσι δαιδαλέοισιν | Sondern verbrannte den Held mit dem künstlichen Waffengeschmeide, | |
| ἠδ' ἔπι σῆμ' ἔχεεν· περὶ δὲ πτελέας ἐφύτευσαν | Häufte darauf ihm einmal; und rings mit Ulmen umpflanzten's | |
| νύμφαι ὀρεστιάδες, κοῦραι Διὸς αἰγιόχοιο. – | 420 | Bergbewohnende Nymphen, des Ägiserschütterers Töchter. |
| οἳ δέ μοι ἑπτὰ κασίγνητοι ἔσαν ἐν μεγάροισιν, | Sieben waren der Brüder mir dort in unserer Wohnung; | |
| οἳ μὲν πάντες ἰῷ κίον ἤματι Ἄιδος εἴσω· | Diese wandelten all' am selbigen Tage zum Aïs; | |
| πάντας γὰρ κατέπεφνε ποδάρκης δῖος Ἀχιλλεὺς | Denn sie all' erlegte der mutige Renner Achilleus | |
| βουσὶν ἔπ' εἰλιπόδεσσι καὶ ἀργεννῇς ὀίεσσιν. | Bei weißwolligen Schafen und schwerhinwandelnden Rindern. | |
| μητέρα δ', ἣ βασίλευεν ὑπὸ Πλάκῳ ὑληέσσῃ, | 425 | Meine Mutter, die Fürstin am waldigen Hange des Plakos, |
| τὴν ἐπεὶ ἂρ δεῦρ' ἤγαγ' ἅμ' ἄλλοισι κτεάτεσσιν, | Führet' er zwar hieher mit anderer Beute des Krieges; | |
| ἂψ ὅ γε τὴν ἀπέλυσε λαβὼν ἀπερείσι' ἄποινα, | Doch befreit' er sie wieder, und nahm unendliche Lösung: | |
| πατρὸς δ' ἐν μεγάροισι βάλ' Ἄρτεμις ἰοχέαιρα. | Aber sie starb durch Artemis Pfeil im Palaste des Vaters. | |
| Ἕκτορ, ἀτὰρ σύ μοί ἐσσι πατὴρ καὶ πότνια μήτηρ | Hektor, siehe du bist mir Vater jetzo und Mutter, | |
| ἠδὲ κασίγνητος, σὺ δέ μοι ϑαλερὸς παρακοίτης. | 430 | Und mein Bruder allein, o du mein blühender Gatte! |
| ἀλλ' ἄγε νῦν ἐλέαιρε καὶ αὐτοῦ μίμν' ἐπὶ πύργῳ, | Aber erbarme dich nun, und bleib' allhier auf dem Turme! | |
| μὴ παῖδ' ὀρφανικὸν ϑήῃς χήρην τε γυναῖκα. | Mache nicht zur Waise das Kind, und zur Witwe die Gattin! | |
| λαὸν δὲ στῆσον παρ' ἐρινεόν, ἔνϑα μάλιστα | Stelle das Heer dorthin bei dem Feigenbaume; denn dort ist | |
| ἀμβατός ἐστι πόλις καὶ ἐπίδρομον ἔπλετο τεῖχος. | Leichter die Stadt zu ersteigen, und frei die Mauer dem Angriff. | |
| τρὶς γὰρ τῇ γ' ἐλϑόντες ἐπειρήσανϑ' οἱ ἄριστοι | 435 | Dreimal haben ja dort es versucht die tapfersten Krieger, |
| ἀμφ' Αἴαντε δύω καὶ ἀγακλυτὸν Ἰδομενῆα | Kühn um die Ajas beid', und den hohen Idomeneus strebend, | |
| ἠδ' ἀμφ' Ἀτρεΐδας καὶ Τυδέος ἄλκιμον υἱόν· | Auch um des Atreus' Söhn', und den starken Held Diomedes: | |
| ἢ πού τίς σφιν ἔνισπε ϑεοπροπίων ἐὺ εἰδώς, | Ob nun jenen vielleicht ein kundiger Seher geweissagt, | |
| ἤ νυ καὶ αὐτῶν ϑυμὸς ἐποτρύνει καὶ ἀνώγει.« | Oder auch selbst ihr Herz aus eigener Regung sie antreibt. | |
| τὴν δ' αὖτε προσέειπε μέγας κορυϑαίολος Ἕκτωρ· | 440 | Ihr antwortete drauf der helmumflatterte Hektor: |
| »ἦ καὶ ἐμοὶ τάδε πάντα μέλει, γύναι· ἀλλὰ μάλ' αἰνῶς | Mich auch härmt das alles, o Trauteste; aber ich scheue | |
| αἰδέομαι Τρῶας καὶ Τρῳάδας ἑλκεσιπέπλους, | Trojas Männer zu sehr, und die saumnachschleppenden Weiber, | |
| αἴ κε κακὸς ὣς νόσφιν ἀλυσκάζω πολέμοιο. | Wenn ich hier, wie ein Feiger, entfernt das Treffen vermeide. | |
| οὐδέ με ϑυμὸς ἄνωγεν, ἐπεὶ μάϑον ἔμμεναι ἐσϑλὸς | Auch verbeut es mein Herz; denn ich lernete tapferes Mutes | |
| αἰεὶ καὶ πρώτοισι μετὰ Τρώεσσι μάχεσϑαι, | 445 | Immer zu sein, und voran mit Trojas Helden zu kämpfen, |
| ἀρνύμενος πατρός τε μέγα κλέος ἠδ' ἐμὸν αὐτοῦ. | Schirmend zugleich des Vaters erhabenen Ruhm, und den meinen! | |
| εὖ γὰρ ἐγὼ τόδε οἶδα κατὰ φρένα καὶ κατὰ ϑυμόν· | Zwar das erkenn' ich gewiß in des Herzens Geist und Empfindung: | |
| ἔσσεται ἦμαρ, ὅτ' ἄν ποτ' ὀλώλῃ Ἴλιος ἱρὴ | Einst wird kommen der Tag, da die heilige Ilios hinsinkt, | |
| καὶ Πρίαμος καὶ λαὸς ἐυμμελίω Πριάμοιο. | Priamos selbst, und das Volk des lanzenkundigen Königs. | |
| ἀλλ' οὔ μοι Τρώων τόσσον μέλει ἄλγος ὀπίσσω | 450 | Doch nicht kümmert mich so der Troer künftiges Elend, |
| οὔτ' αὐτῆς Ἑκάβης οὔτε Πριάμοιο ἄνακτος | Nicht der Hekabe selbst, noch Priamos auch des Beherrschers, | |
| οὔτε κασιγνήτων, οἵ κεν πολέες τε καὶ ἐσϑλοὶ | Noch der Brüder umher, die dann, so viel und so tapfer, | |
| ἐν κονίῃσι πέσοιεν ὑπ' ἀνδράσι δυσμενέεσσιν, | All' in den Staub hinsinken, von feindlichen Händen getötet: | |
| ὅσσον σεῦ, ὅτε κέν τις Ἀχαιῶν χαλκοχιτώνων | Als wie dein's, wenn ein Mann der erzumschirmten Achaier | |
| δακρυόεσσαν ἄγηται, ἐλεύϑερον ἦμαρ ἀπούρας. | 455 | Weg die Weinende führt, der Freiheit Tag dir entreißend; |
| καί κεν ἐν Ἄργει ἐοῦσα πρὸς ἄλλης ἱστὸν ὑφαίνοις, | Wenn du in Argos webst für die Herrscherin, oder auch mühsam | |
| καί κεν ὕδωρ φορέοις Μεσσηίδος ἢ Ὑπερείης | Wasser trägst aus dem Quell Hypereia, oder Messeïs, | |
| πόλλ' ἀεκαζομένη, κρατερὴ δ' ἐπικείσετ' ἀνάγκη. | Sehr unwilliges Muts; doch hart belastet der Zwang dich! | |
| καί ποτέ τις εἴπῃσιν ἰδὼν κατὰ δάκρυ χέουσαν· | Künftig sagt dann einer, die Tränenvergießende schauend: | |
| ›Ἕκτορος ἥδε γυνή, ὃς ἀριστεύεσκε μάχεσϑαι | 460 | Hektors Weib war diese, des tapfersten Helden im Volke |
| Τρώων ἱπποδάμων, ὅτε Ἴλιον ἀμφεμάχοντο.‹ | Rossebezähmender Troer, da Ilios Stadt sie umkämpften! | |
| ὥς ποτέ τις ἐρέει· σοὶ δ' αὖ νέον ἔσσεται ἄλγος | Also spricht man hinfort; und neu erwacht dir der Kummer, | |
| χήτεϊ τοιοῦδ' ἀνδρός, ἀμύνειν δούλιον ἦμαρ. | Solchen Mann zu vermissen, der retten dich könnt' aus der Knechtschaft! | |
| ἀλλά με τεϑνηῶτα χυτὴ κατὰ γαῖα καλύπτοι, | Aber es decke mich Toten der aufgeworfene Hügel, | |
| πρίν γ' ἔτι σῆς τε βοῆς σοῦ ϑ' ἑλκηϑμοῖο πυϑέσϑαι.« | 465 | Eh' ich deines Geschreies vernehm', und deiner Entführung! |
| ὣς εἰπὼν οὗ παιδὸς ὀρέξατο φαίδιμος Ἕκτωρ. | Also der Held, und hin nach dem Knäblein streckt' er die Arme; | |
| ἂψ δ' ὁ πάις πρὸς κόλπον ἐυζώνοιο τιϑήνης | Aber zurück an den Busen der schöngegürteten Amme | |
| ἐκλίνϑη ἰάχων, πατρὸς φίλου ὄψιν ἀτυχϑείς, | Schmiegte sich schreiend das Kind, erschreckt von dem liebenden Vater, | |
| ταρβήσας χαλκόν τε ἰδὲ λόφον ἱππιοχαίτην, | Scheuend des Erzes Glanz, und die flatternde Mähne des Busches, | |
| δεινὸν ἀπ' ἀκροτάτης κόρυϑος νεύοντα νοήσας· | 470 | Welchen es fürchterlich sah von des Helmes Spitze herabwehn. |
| ἐκ δ' ἐγέλασσε πατήρ τε φίλος καὶ πότνια μήτηρ. | Lächelnd schaute der Vater das Kind, und die zärtliche Mutter. | |
| αὐτίκ' ἀπὸ κρατὸς κόρυϑ' εἵλετο φαίδιμος Ἕκτωρ | Schleunig nahm vom Haupte den Helm der strahlende Hektor, | |
| καὶ τὴν μὲν κατέϑηκεν ἐπὶ χϑονὶ παμφανάουσαν | Legete dann auf die Erde den schimmernden; aber er selber | |
| αὐτὰρ ὅ γ' ὃν φίλον υἱὸν ἐπεὶ κύσε πῆλέ τε χερσίν. | Küßte sein liebes Kind, und wiegt' es sanft in den Armen; | |
| εἶπεν ἐπευξάμενος Διί τ' ἄλλοισίν τε ϑεοῖσιν· | 475 | Dann erhob er die Stimme zu Zeus und den anderen Göttern: |
| »Ζεῦ ἄλλοι τε ϑεοί, δότε δὴ καὶ τόνδε γενέσϑαι | Zeus und ihr anderen Götter, o laßt doch dieses mein Knäblein | |
| παῖδ' ἐμόν, ὡς καὶ ἐγώ περ, ἀριπρεπέα Τρώεσσιν, | Werden dereinst, wie ich selbst, vorstrebend im Volk der Troer, | |
| ὧδε βίην τ' ἀγαϑὸν καὶ Ἰλίου ἶφι ἀνάσσειν. | Auch so stark an Gewalt, und Ilios mächtig beherrschen! | |
| καί ποτέ τις εἴποι ›πατρός γ' ὅδε πολλὸν ἀμείνων‹ | Und man sage hinfort: Der ragt noch weit vor dem Vater! | |
| ἐκ πολέμου ἀνιόντα· φέροι δ' ἔναρα βροτόεντα | 480 | Wann er vom Streit heimkehrt, mit der blutigen Beute beladen |
| κτείνας δήιον ἄνδρα, χαρείη δὲ φρένα μήτηρ.« | Eines erschlagenen Feinds! Dann freue sich herzlich die Mutter! | |
| ὣς εἰπὼν ἀλόχοιο φίλης ἐν χερσὶν ἔϑηκεν | Jener sprach's, und reicht' in die Arme der liebenden Gattin | |
| παῖδ' ἑόν· ἣ δ' ἄρα μιν κηώδεϊ δέξατο κόλπῳ | Seinen Sohn; und sie drückt' ihn an ihren duftenden Busen, | |
| δακρυόεν γελάσασα. πόσις δ' ἐλέησε νοήσας | Lächelnd mit Tränen im Blick; und ihr Mann voll inniger Wehmut | |
| χειρί τέ μιν κατέρεξεν ἔπος τ' ἔφατ' ἔκ τ' ὀνόμαζεν· | 485 | Streichelte sie mit der Hand, und redete, also beginnend: |
| »δαιμονίη, μή μοί τι λίην ἀκαχίζεο ϑυμῷ· | Armes Weib, nicht mußt du zu sehr mir trauren im Herzen! | |
| οὐ γάρ τίς μ' ὑπὲρ αἶσαν ἀνὴρ Ἄιδι προϊάψει, | Keiner wird gegen Geschick hinab mich senden zum Aïs. | |
| μοῖραν δ' οὔ τινα φημὶ πεφυγμένον ἔμμεναι ἀνδρῶν, | Doch dem Verhängnis entrann wohl nie der Sterblichen einer, | |
| οὐ κακὸν οὐδὲ μὲν ἐσϑλόν, ἐπὴν τὰ πρῶτα γένηται. | Edel oder geringe, nachdem er einmal gezeugt ward. | |
| ἀλλ' εἰς οἶκον ἰοῦσα τὰ σ' αὐτῆς ἔργα κόμιζε, | 490 | Doch zum Gemach hingehend besorge du deine Geschäfte, |
| ἱστόν τ' ἠλακάτην τε, καὶ ἀμφιπόλοισι κέλευε | Spindel und Webestuhl, und gebeut den dienenden Weibern, | |
| ἔργον ἐποίχεσϑαι· πόλεμος δ' ἄνδρεσσι μελήσει | Fleißig am Werke zu sein. Der Krieg gebühret den Männern | |
| πᾶσιν, ἐμοὶ δὲ μάλιστα, τοὶ Ἰλίῳ ἐγγεγάασιν.« | Allen, und mir am meisten, die Ilios Feste bewohnen. | |
| ὣς ἄρα φωνήσας κόρυϑ' εἵλετο φαίδιμος Ἕκτωρ | Als er dieses gesagt, da erhob der strahlende Hektor | |
| ἵππουριν· ἄλοχος δὲ φίλη οἶκόνδε βεβήκει | 495 | Seinen umflatterten Helm; und es ging die liebende Gattin |
| ἐντροπαλιζομένη, ϑαλερὸν κατὰ δάκρυ χέουσα. | Heim, oft rückwärts gewandt, und häufige Tränen vergießend. | |
| αἶψα δ' ἔπειϑ' ἵκανε δόμους ἐὺ ναιετάοντας | Bald erreichte sie nun die wohlgebauete Wohnung | |
| Ἕκτορος ἀνδροφόνοιο, κιχήσατο δ' ἐνδοϑι πολλὰς | Hektors des Männervertilgers, und fand die Mägd' in der Kammer | |
| ἀμφιπόλους, τῇσιν δὲ γόον πάσῃσιν ἐνῶρσεν. | Viel an der Zahl; und allen erregte sie Kummer und Tränen. | |
| αἳ μὲν ἔτι ζωὸν γόον Ἕκτορα ᾧ ἐνὶ οἴκῳ· | 500 | Lebend noch ward Hektor beweint in seinem Palaste; |
| οὐ γάρ μιν ἔτ' ἔφαντο ὑπότροπον ἐκ πολέμοιο | Denn sie glaubten gewiß, er kehre nie aus der Feldschlacht | |
| ἵξεσϑαι, προφυγόντα μένος καὶ χεῖρας Ἀχαιῶν. | Wieder heim, der Achaier gewaltigen Händen entrinnend. | |
| οὐδὲ Πάρις δήϑυνεν ἐν ὑψηλοῖσι δόμοισιν· | Paris auch zauderte nicht in der hochgewölbeten Wohnung; | |
| ἀλλ' ὅ γ' ἐπεὶ κατέδυ κλυτὰ τεύχεα ποικίλα χαλκῷ, | Sondern sobald er in Waffen von strahlendem Erz sich gehüllet, | |
| σεύατ' ἔπειτ' ἀνὰ ἄστυ ποσὶ κραιπνοῖσι πεποιϑώς. | 505 | Eilt' er daher durch die Stadt, den hurtigen Füßen vertrauend. |
| ὡς δ' ὅτε τις στατὸς ἵππος, ἀκοστήσας ἐπὶ φάτνῃ, | Wie wenn im Stall ein Roß, mit Gerste genährt an der Krippe, | |
| δεσμὸν ἀπορρήξας ϑείῃ πεδίοιο κροαίνων, | Mutig die Halfter zerreißt, und stampfendes Laufs in die Felder | |
| εἰωϑὼς λούεσϑαι ἐυρρεῖος ποταμοῖο, | Eilt, zum Bade gewöhnt des lieblich wallenden Stromes, | |
| κυδιάων· ὑψοῦ δὲ κάρη ἔχει, ἀμφὶ δὲ χαῖται | Trotzender Kraft; hoch trägt es das Haupt, und rings an den Schultern | |
| ὤμοις ἀίσσονται· ὃ δ' ἀγλαΐηφι πεποιϑώς, | 510 | Fliegen die Mähnen umher; doch stolz auf den Adel der Jugend, |
| ῥίμφα ἑ γοῦνα φέρει μετά τ' ἤϑεα καὶ νομὸν ἵππων· – | Tragen die Schenkel es leicht zur bekannteren Weide der Stuten: | |
| ὣς υἱὸς Πριάμοιο Πάρις κατὰ Περγάμου ἄκρης | Also wandelte Paris daher von Pergamos Höhe, | |
| τεύχεσι παμφαίνων ὥς τ' ἠλέκτωρ ἐβεβήκει | Priamos' Sohn, umstrahlt von Waffenglanz, wie die Sonne, | |
| καγχαλάων, ταχέες δὲ πόδες φέρον. αἶψα δ' ἔπειτα | Freudiges Muts; und es flogen die Schenkel ihm. Eilend nun hatt' er | |
| Ἕκτορα δῖον ἔτετμεν ἀδελφεόν, εὖτ' ἄρ' ἔμελλεν | 515 | Hektor den Bruder erreicht, den Erhabenen, als er sich wende |
| στρέψεσϑ' ἐκ χώρης, ὅϑι ᾗ ὀάριζε γυναικί. | Wollte vom Ort, wo vertraulich mit seinem Weib' er geredet. | |
| τὸν πρότερος προσέειπεν Ἀλέξανδρος ϑεοειδής· | Also begann zu jenem der göttliche Held Alexandros: | |
| »ἠϑεῖ', ἦ μάλα δή σε καὶ ἐσσυμένον κατερύκω | Wahrlich, mein älterer Bruder, dich Eilenden hielt ich zu lange | |
| δηϑύνων, οὐδ' ἦλϑον ἐναίσιμον, ὡς ἐκέλευες.« | Zaudernd auf, und kam nicht ordentlich, wie du befahlest. | |
| τὸν δ' ἀπαμειβόμενος προσέφη κορυϑαίολος Ἕκτωρ· | 520 | Ihm antwortete drauf der helmumflatterte Hektor: |
| »δαιμόνι', οὐκ ἄν τίς τοι ἀνήρ, ὃς ἐναίσιμος εἴη, | Guter, dir darf kein sterblicher Mann, der Billigkeit achtet, | |
| ἔργον ἀτιμήσειε μάχης, ἐπεὶ ἄλκιμός ἐσσι. | Tadeln die Werke der Schlacht, du bist ein tapferer Streiter. | |
| ἀλλὰ ἑκὼν μεϑιεῖς τε καὶ οὐκ ἐϑέλεις· τὸ δ' ἐμὸν κῆρ | Oft nur säumest du gern, und willst nicht. Aber es kränkt mir | |
| ἄχνυται ἐν ϑυμῷ, ὅϑ' ὑπὲρ σέϑεν αἴσχε' ἀκούω | Innig das Herz, von dir die schmähliche Rede zu hören | |
| πρὸς Τρώων, οἳ ἔχουσι πολὺν πόνον εἵνεκα σεῖο. | 525 | Unter dem troischen Volk, das um dich so manches erduldet. |
| ἀλλ' ἴομεν· τὰ δ' ὄπισϑεν ἀρεσσόμεϑ', αἴ κέ ποϑι Ζεὺς | Komm, dies wollen hinfort wir berichtigen, wann uns einmal Zeus | |
| δώῃ ἐπουρανιοῖσι ϑεοῖς αἰειγενέτῃσιν | Gönnen wird, des Himmels unendlich waltenden Göttern | |
| κρητῆρα στήσασϑαι ἐλεύϑερον ἐν μεγάροισιν, | Dankend den Krug zu stellen der Freiheit in dem Palaste, | |
| ἐκ Τροίης ἐλάσαντας ἐυκνήμιδας Ἀχαιούς.« | Weil wir aus Troja verjagt die hellumschienten Achaier. |